NAADI PARIKSHA (Pulse Examination):
The VAIDYA who doesn’t possess the skill of NAADI Pariksha doesn’t qualify to be called a VAIDYA(simply speaking he is a quack). This line is enough to summarize the importance of acquiring the skill of NAADI Pariksha for an Ayurvedic expert. In our GURU SHISHYA PARAMPARA, utmost importance has been given in gaining this skill. In ancient times nearly every renowned Ayurvedic specialist had to master this ART. Due to historical reasons , Ayurved suffered heavy setbacks and expertise in various skills were lost in varying degrees. This is one of the reasons why this skill is not mentioned in some classical texts. It was only in the medieval period that we find detailed mentioning of this skill. This in no way indicates that this skill was extinct. Since it was and it remains the most important tool in Ayurvedic diagnosis, there were many practitioners who were very skilled Naadi experts. Such experts kept this skill alive and passed it on to next generations.
Why is this skill so important? Though the reasons are numerous, we would like to highlight a few
a. Diagnostic tool: Even though texts have mentioned detailed methods of examination which include history taking, examination of the tongue, urine ,stools, palpation, eyes and general/specific appearance of body, NAADI Pariksha can give a precise information of the diagnosis , grade of severity of disease, prognosis, efficacy of the medicines used( so that the expert can change his treatment accordingly), uncovering the hidden information of the patient and disease etc. and all this within few minutes. Also in seriously ill patients, the expert can calculate the time he has in hand in order to save the life of the patient.
b. Warning of the disease: Ayurved has always emphasized on the preventive aspect of treatment. Just imagine a scenario where the patient has come for a general examination or for some trivial complaint and the expert detects some major ongoing disease process on Naadi. Thus he can warn the patient beforehand about this and suggest precautionary measures or treatments. If the patient has enough faith in him, he will definitely benefit from this advice and either start the treatment in the initial stage thus ensuring complete success or he may be able to prevent the disease from further development.
c. Unique skill: In spite of all technological advances, we at amoghsanjeevani continue to see many patients who have not been diagnosed appropriately even after doing extensive investigations and spending scores of money. Why? Because everything cant be demonstrated. Modern doctors themselves acknowledge this fact that investigations should always be seen in correlation with other factors. Many diseases cant be evaluated by investigations only and many investigations don’t imply precisely. In such cases NAADI PARIKSHA can surely help in diagnosis and most importantly treatment.
Thus we can see that an Ayurvedic expert who has mastered this skill is more precise in his treatments . Such an expert uses modern investigations, still he is not totally dependent on them only. He judiciously uses all these tools to his advantage since he recognizes each ones strengths as well as limitations. He understands that a needle and an arrow have different uses. It must be remembered that Ayurvedic Naadi Pariksha is different from modern Pulse examination in many aspects. Though it may feel that in this age of technological advances this ancient skill would be lost soon,the truth is exactly the opposite. This art has survived through all these ages and people continue to come to us for their diagnostic evaluation. The height of expertise in Naadi pariksha cannot be measured and the expert goes on learning and learning more. Hence he doesn’t claim to have achieved perfection. Instead he always strives for excellence, thus sharpening his skills which ultimately help his patients.
नाड़ी परीक्षा
वह चिकित्सक जो नाड़ी परीक्षा नहीं कर सकता हो वह वैद्य कहलाने के योग्य नहीं (स्पष्ट शब्दों में कहें तो वह एक झोलाछाप है) , यह एक वाक्य ही यह समझने के लिए पर्याप्त है की आयुर्वेदिक चिकित्सक के लिए नाड़ी परीक्षा कर पाने की विद्या कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी गुरु शिष्य परंपरा में इस ज्ञान को प्राप्त करने हेतु सर्वाधिक महत्व दिया गया है। लोगों ने सुना होगा पुराने समय में वैद्य मात्र नाड़ी परीक्षा करके ही रोगी का निदान एवं चिकित्सा करने में पूर्णरूपेण समर्थ होते थे। ऐतिहासिक कारणों से आयुर्वेद को काफी नुकसान पहुंचा एवं कई कलाएं लुप्तप्राय हो गई। आयुर्वेद के कई प्राचीन ग्रंथों में नाड़ी परीक्षा का उल्लेख ना होने के यही कारण हैं । मध्यकाल में कई ग्रंथों में इस विद्या को पुनः स्थान प्राप्त हुआ। इससे यह कहना उचित नहीं होगा कि यह विद्या लुप्त हो गई। आयुर्वेदिक निदान करने में हमेशा से इसका सर्वाधिक महत्व रहा है। उच्च कोटि के वैद्य को नाड़ी देखने की कला सदैव ही ज्ञात रही है। ऐसे महान वैद्य चिकित्सकों ने अपना यह ज्ञान अपनी आने वाली पीढ़ियों को प्रदान किया।
नाड़ी परीक्षा की विधि इतनी महत्वपूर्ण क्यों है ? ऐसे तो इसके अनेक कारण हैं परंतु यहां हम कुछ महत्वपूर्ण कारणों पर प्रकाश डालेंगे
a. निदान का उपकरण : आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में यूं तो रोगी परीक्षण की अनेक विधियां उल्लिखित है जैसे रोगी का इतिहास, जीभ परीक्षा, मूत्र परीक्षा, नेत्र परीक्षा, स्पर्श परीक्षा आदि । इन सब के बावजूद नाड़ी परीक्षा द्वारा सटीक तरीके से कई बातों को जाना जा सकता है, जैसे रोग की गंभीरता, रोग की साध्य /असाध्य अवस्था, औषधियां कितनी कारगर हो रही हैं (इसके द्वारा वैद्य चिकित्सा में बदलाव कर सकते हैं), रोगी की गुप्त बातों को जानना इत्यादि। और यह सभी विषय कुछ ही क्षणों में नाड़ी परीक्षा द्वारा जाने जा सकते हैं। साथ ही अत्यधिक गंभीर रूप से बीमार रोगी के विषय में यह जाना जा सकता है कि चिकित्सक के पास चिकित्सा करने हेतु कितना समय हाथ में है।
b. रोगी को चेतावनी देना: आयुर्वेद में सदैव ही रोग से बचाव को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। जरा कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति वैद्य के पास किसी छोटी मोटी तकलीफ हेतु आया हुआ है एवं वैद्य ने नाड़ी परीक्षा द्वारा उसके किसी गंभीर रोग की प्रक्रिया को जान लिया है जिसके बारे में रोगी को स्वयं पता ही नहीं है। ऐसी स्थिति में वह उस व्यक्ति को सावधान कर सकते हैं एवं बीमारी की रोकथाम हेतु आवश्यक सलाह दे सकते हैं । यदि रोगी ने वैद्य की बातों पर श्रद्धा रखी तो इसका पूरा फायदा उसी को होना है एवं समय रहते वह अपना इलाज करा सकता है। इस प्रकार वह व्यक्ति आगे होने वाली गंभीर समस्याओं से बच सकता है।.
c. बेमिसाल कौशल : ‘’अमोघसंजीवनी’’ में हम ऐसे कई रोगियों को देखते रहे हैं जिनका असंख्य नवीन परीक्षणों द्वारा एवं काफी पैसा खर्च करने के बावजूद रोग का सटीक निदान नहीं हो सका। क्यों ? इसका सीधा सा उत्तर यह है की हर चीज को प्रमाणित नहीं किया जा सकता । आधुनिक चिकित्सक स्वयं इस बात को स्वीकारते हैं की परीक्षण( टेस्ट) की व्याख्या सदैव ही कई बातों को मद्देनजर रखते हुए की जानी चाहिए। हर रोग का निदान केवल परीक्षणों द्वारा संभव नहीं एवं हर परीक्षण सटीक निदान नहीं करा सकता। ऐसे सभी रोगियों में नाड़ी परीक्षण द्वारा निदान में अपूर्व सहायता मिलती है जिसके द्वारा रोगी की सटीक चिकित्सा संभव हो पाती है।.
इस प्रकार हम देखते हैं एक नाड़ी वैद्य जिसने इस विद्या में महारत हासिल कर ली है वह चिकित्सा करने में सर्वाधिक निपुण होता है। ऐसा वैद्य आधुनिक नैदानिक परीक्षणों का प्रयोग अवश्य करता है, इसके बावजूद उन पर निर्भर नहीं रहता। ऐसा वैद्य नैदानिक विधियों का प्रयोग अपनी सुविधा से कर पाता है क्योंकि वह उनकी शक्तियों एवं सीमाओं को बखूबी जानता है। वह यह बात भलीभांति समझता है कि एक सुई और तीर दोनों ही अलग-अलग जगह उपयोगी हैं। यहां इस बात को याद रखना चाहिए की आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण आधुनिक नाड़ी परीक्षा से हर मामले में भिन्न है। लोगों को ऐसा भ्रम हो सकता है कि आज टेक्नोलॉजी के इस युग में नाड़ी परीक्षा जैसे पुरातन नैदानिक कौशल का क्या उपयोग हो सकता है। सत्य इसके एकदम विपरीत है। यह विद्या समय के अथक प्रवाह के संग बहती हुई आई है एवं रोगी हमारे पास नाड़ी परीक्षा करने हेतु आते ही रहते हैं। इस कौशल की ऊंचाई को नापना संभव नहीं है एवं एक नाड़ी वैद्य सदैव सीखता ही रहता है। वह यह कभी दावा नहीं कर सकता कि वह पूर्णरूपेण निपुण हो चुका है। इसके उलट वह शिष्य की भांति सीखता रहता है तथा अपने कौशल को निखारता चला जाता है। उसके इस कौशल का उपयोग अंततः रोगियों को ही होता है।